एक एबले की डाय़री 

#एबलेकीविदेसयात्रा 
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ऐबला चला दुबई : दूसरी क़िस्त 
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तो भिया ये अपनी पेली विदेस यात्रा थी, जाने के पेले तक अपन कभी हवाई झाज में नी बैठे थे, ये पेला चक्कर था कंपनी की क्रिपा से, तो अपन भेंकर टेंसन में थे, तैयारी तो भिया जैसे तैसे हो ही गयी थी, धन की जुगाड़ भी कल्ली थी, बात घूम - फिर के यहीं अटकरी थी की हवाई झाज में कैसे होगा, 
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बाबा जो आदमी बस और टिरेन के अग्गे कई गया नी हो तो वो तो दुजेगा न, मतलब टेंसन ये था की टिरेन ज्यादा से ज्यादा पटली से उतर जाएगी या बस कही टकरा जाएगी लेकिन हवाई झाज ऊपर से गिरेगा तो क्या होगा, और भिया दूसरी आफत ये की आप किसी को बोल भी नी सकते बेइज्जती ख़राब होने का डर होता है, 
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अपने को तो ये भी नी मालम की हवाई अड्डे पे जा के क्या पूछना है ? किससे पूछना है ? और कैसे पूछना है ? यार मतलब अंग्रेजी में भी तो हाथ तंग था नी, अब कोई सरवटे बस स्टेण्ड तो है नी की की किसीसे भी पुछलो की " भिया खाचरोद जाने वाली बस किधर मिलेगी " और कोई भी बंदा गुटके की पीक मार के बोल देगा की " आप एक काम करो भिया ५ लंबर पे देख लो वई पे होगी " या फिर टेसन गए और माड़ साब से पूछ लिया की " मऊ अद्दा " टेम से चल रिया है क्या ? पर या पे तो ऐसी कोई सुविधा थी नी, 
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पर इंदौरी भिया समझदार और जुगाड़ू होते है भिया, तो अपनने कंपनी के ही एक थोड़े सीरियस टाइप के सज्जन भिया को पकड़ लिया जो पेले कई बार हवाई झाज में बैठे थे और उनको पिराब्लेम बीतलायी तो उनने बोला आप साथ में रहो कोई टेंसन वाली बात नहीं मै सब बता दूंगा, 
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तो भिया अपन एरपोर्ट पोचे और स.भी. ( सज्जन भिया ) के साथ लग लिए, उनने अपने साथ मेरा बोर्डिंग पास छपवा दिया और बाकी का थोड़ा ज्ञान दे दिया, आप का भई अब चौड़े हो के घूम रिया था, भिया एरपोर्ट और बस स्टेण्ड या रेलवे टेसन में ये फर्क होता है की एरपोर्ट पे तक़रीबन हर आदमी " फिरंगी की औलाद " बन के घूम रिया होता है और हमारे जैसे बावलो को हिकारत की निगाह से देखता है, एक बात और समझ में आयी की एरपोर्ट पे अपने को भूक नी लगती भिया चाहे आप दो दिन से भूखे हो, 
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तो पेलवान थोड़ी देर में अपन हवाई झाज में बैठ गए स. भी. के बाजु में, उनने अपने को बेल्ट पिनाया उत्ते में एरलाइन वाली भेंजी ने पानी पिलाया और एक पाकिट हाथ में पकड़ा के निकल ली, भिया उसके अंदर एक शॉल थी, पाकिट सीलबंद था तो हाथ तो नी लगाया पर वैसे सई लगरी थी, अपन ने सोचा माँ के काम आएगी अपन तो सूटर पेरते है, उत्ते में स.भी. ने बीतलाया की ये तो हवाई झाज में ओढ़ने के लिए दी है और उतरते समय वापस करनी है, 
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मैंने सोचा चलो कोई नी या का तो ध्यान रखरे है, तो भिया अपन ने शाल ओढ़ली, 
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थोड़ी देर में स.भी. ने अपने को धक्के मार के उठाया की पेलवान उठो कित्ती देर सोओगे, 
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तो भिया होंन कुल मिला के हुवा ऐसा की अपन ने शाल ओढ़ी और अपन लपक के सो लिए, न आपके भई ने टेकाफ देख न लेंडिंग, बिच में नास्ता - पानी आया वो भी भिरम हो गया, 
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अब आप बताओ पेलवान इसमें अपनी क्या गलती है जो आदमी जिनगी भर " म. प्र. रा. प. नि. " की बसों में घुमा जिसमे बैठना तो दूर खड़ा होना भी दूभर था, (उस ज़माने में बसों में बकरिया भी सफर करती थी भिया ) और बैठने को जिगो मिल भी जाये तो सड़क के गड्ढे अलग से मजे लेते थे, तो ऐसे माहौल से निकला आदमी हवाई झाज के ठन्डे माहौल में मुलायम सीट पे शाल ओढ़ के बैठेगा तो सोयेगा नी ? 
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कजाने कित्ते सपने देखे थे आपके भई ने, झाज में खाएंगे " पिएंगे " भोत जानकारी दी थी यार ज़माने भर ने 
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क्रमशः 
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~अbhay

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