एक एबले की डाय़री
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#एबलेकीविदेसयात्रा
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ऐबला चला दुबई : तीसरी क़िस्त ( गतांक से अग्गे )
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तो भिया दूसरी किश्त में आप ये पढ़ के खुस हो लिए की आपका भई बगैर खाये " पिए " दुबई पोच गया, वा का हवाई अड्डा देख के अपन भेरू हो गए पेलवान, जने का का से हवाई झाज आ रिये थे और जने का का जा रिये थे,
इत्ते फिरंग घूम रिये थे बाबा की उन सबके बिच में मेरेको ऐसा लगा जैसे भोत सारे केक, पेस्ट्री, डोनट, सेंडविच, सासेजेस और बेकन के बिच में कचोरी फस गयी हो,
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तो भिया वा से अपन कंपनी की बस से होटल पोचे, ( अब आपस की बात है इसलिए बितला रिया हु की आपका भई ५ इश्टार होटल में भी पेली चक्कर ही गया था ) तो बाबा अपन होटल पोच गए और अपने को एक कमरा अलाट हो गया,
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होटल में आपके भाई को " जुड़वाँ साझेदारी " ( कुछ लोग इसको हिंदी में ट्विन शेरिंग भी बोलते है ) में रहना था, अब दूसरे भिया जो थे वो दूसरे दिन आने वाले थे तो पेले दिन अपन एकेले ही थे पुरे के पुरे कमरे में, सुरु सुरु में तो बढ़िया लगा बाबा सब आयटम हल्लू - हल्लू चेक कल्लीये और फिर खाना खाने गए,
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यकीं मानना पेलवान खाने के आयटमो में से ९० % को तो अपन पिचानते ही नी थे, जने क्या क्या रखा था, अच्छा भिया परोसदारी का कोई प्रावधान नी था ये सबसे बड़ी पिराब्लेम थी, अपने को तो पंगत में जीमने की आदत है याने जबतक छोरी के पिताजी पंगत में घूम के ये न बोले " अरे मंदसौर वाले मामाजी को और जलेबी परोसो भाई, १०-१२ से उनका क्या होगा "
या फिर कोई बंदा " मठ्ठा, मठ्ठा, मठ्ठा, मठ्ठा " चिल्लाता हुवा आये और उसके पास आने के पेले लोग - बाग़ फटाफट कटोरी खाली करने लग जाये ( मुझे पता है मैं विषय से भटक रिया हु पर पंगत की याद आ गयी तो अपन भी रायते के माफिक फ़ैल गए )
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खैर यहाँ तो " गिद्ध भोजन " था तो अपन पिलेट हाथ में ले के बल्ले बनाने लग गए ( बाबा वो इत्ती भारी पिलेट जब खाने से भर जाये तो " बाइसेप - ट्राइसेप " अपने आप बन जाते है )
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तो भिया भरपेट फावड़े मारने के बाद अपन वापस रूम में आ गए, जब सोने का टेम हुवा तो दरवाजा की सांकल बंद करने गए तो भिया उसमे तो सांकल ही नी थी, ऊपर देखा तो चिटकनी भी नी थी,
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बड़ा दिमाग ख़राब हुवा अपन ने तुरंत फ़ोन उठाया की होटल वालो को झाड़ दूंगा की " ये क्या तमाशा है इत्ते पैसे लेते हो और ढंग की सांकल / कुण्डी नी लगवा सकते हो क्या " पर फिर जितनी फुर्ती से फ़ोन उठाया डबल फुर्ती से रख दिया, कॉल करके बोलूवा क्या, इत्ती सब बात की अंग्रेजी कहा आती है "
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फिर जैसे तैसे कॉल कर के अगले को समझाया तो उसने बोला की वो हॉउस कीपिंग को भेजेगा, अब इसके आगे मेरे साथ अगले की ( हाउस कीपिंग वाले भिया ) यु बातचीत हुई ( उसकी जो अंग्रेजी मेरेको समझ में आयी और मेरी जो अंग्रेजी सुन के वो घायल हुवा उसका दोनों का अनुवाद है पेलवान )
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हॉ. की. वा. भि. : हां भिया मै आपकी क्या सेवा कर सकता हु
मै : दरवाजे में सांकल नी है, दरवाजा लॉक कैसे होगा ( मन में : ज्यादा तेज चलने की जरुरत नी है )
हॉ. की. वा. भि. : सर ये ऑटोमेटिक लॉक है, आप सिर्फ दरवाजा खींच ले
मै : उतना तो मुझे भी समझ में आता है, कोई पेली बार रुके है क्या ५ स्टार में, पर ये ख़राब है बार बार खुल जाता है ( बाबा इंदौर में मिलना तब बताऊंगा )
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हॉ. की. वा. भि. : अरे नहीं सर वो अंदर से खुलता है बाहर से नहीं खुलेगा,
मै : कैसे नी खुलेगा मैंने अभी खोल के देखा तो खुल रहा है ( पागल समझ रिया है क्या )
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हॉ. की. वा. भि. : सर आपने चाभी से खोला होगा, वरना नहीं खुलेगा
मै : नी यार बगैर चाभी के खुल गया था ( सफाई से झूठ बोलते हुवे )
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हॉ. की. वा. भि. : सर आप बाहर जाइये मैं अंदर से बंद करता हु फिर आप खोल के देखिये
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और भिया जैसे ही मै बाहर गया मुझे याद आया की नगदी तो कमरे में ही है, मै चीते की फुर्ती से वापिस कमरे में आया और उसको बोला की पेले तू बाहर जा, फिर पेलवान वो बाहर गया भाई ने धन कब्जे में किया और फिर बाहर गया,
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और भिया क्या बताऊ बाहर से लॉक सई में नी खुल रिया था, भोत भेंकर लजवाने के काम हो गए, अगला भी ऐसे देख रिया था की पता नी कौन कौन लोग आ जाते है ५ स्टार में,
पर अपन कोई हार मान रिये है क्या, अपन ने भी बोल दिया हो सकता है पेले कुछ ख़राब हो गया होगा अब सई - साट हो गया है, और ये भी बोल दिया की एक चिटकनी लगा देते तो इत्ता कन्फूजन तो नी होता न, हां नी तो
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चलो भिया अब सो रिया हु कल दुबई घूमने जाना है
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क्रमशः
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#एबलेकीविदेसयात्रा
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ऐबला चला दुबई : तीसरी क़िस्त ( गतांक से अग्गे )
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तो भिया दूसरी किश्त में आप ये पढ़ के खुस हो लिए की आपका भई बगैर खाये " पिए " दुबई पोच गया, वा का हवाई अड्डा देख के अपन भेरू हो गए पेलवान, जने का का से हवाई झाज आ रिये थे और जने का का जा रिये थे,
इत्ते फिरंग घूम रिये थे बाबा की उन सबके बिच में मेरेको ऐसा लगा जैसे भोत सारे केक, पेस्ट्री, डोनट, सेंडविच, सासेजेस और बेकन के बिच में कचोरी फस गयी हो,
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तो भिया वा से अपन कंपनी की बस से होटल पोचे, ( अब आपस की बात है इसलिए बितला रिया हु की आपका भई ५ इश्टार होटल में भी पेली चक्कर ही गया था ) तो बाबा अपन होटल पोच गए और अपने को एक कमरा अलाट हो गया,
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होटल में आपके भाई को " जुड़वाँ साझेदारी " ( कुछ लोग इसको हिंदी में ट्विन शेरिंग भी बोलते है ) में रहना था, अब दूसरे भिया जो थे वो दूसरे दिन आने वाले थे तो पेले दिन अपन एकेले ही थे पुरे के पुरे कमरे में, सुरु सुरु में तो बढ़िया लगा बाबा सब आयटम हल्लू - हल्लू चेक कल्लीये और फिर खाना खाने गए,
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यकीं मानना पेलवान खाने के आयटमो में से ९० % को तो अपन पिचानते ही नी थे, जने क्या क्या रखा था, अच्छा भिया परोसदारी का कोई प्रावधान नी था ये सबसे बड़ी पिराब्लेम थी, अपने को तो पंगत में जीमने की आदत है याने जबतक छोरी के पिताजी पंगत में घूम के ये न बोले " अरे मंदसौर वाले मामाजी को और जलेबी परोसो भाई, १०-१२ से उनका क्या होगा "
या फिर कोई बंदा " मठ्ठा, मठ्ठा, मठ्ठा, मठ्ठा " चिल्लाता हुवा आये और उसके पास आने के पेले लोग - बाग़ फटाफट कटोरी खाली करने लग जाये ( मुझे पता है मैं विषय से भटक रिया हु पर पंगत की याद आ गयी तो अपन भी रायते के माफिक फ़ैल गए )
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खैर यहाँ तो " गिद्ध भोजन " था तो अपन पिलेट हाथ में ले के बल्ले बनाने लग गए ( बाबा वो इत्ती भारी पिलेट जब खाने से भर जाये तो " बाइसेप - ट्राइसेप " अपने आप बन जाते है )
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तो भिया भरपेट फावड़े मारने के बाद अपन वापस रूम में आ गए, जब सोने का टेम हुवा तो दरवाजा की सांकल बंद करने गए तो भिया उसमे तो सांकल ही नी थी, ऊपर देखा तो चिटकनी भी नी थी,
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बड़ा दिमाग ख़राब हुवा अपन ने तुरंत फ़ोन उठाया की होटल वालो को झाड़ दूंगा की " ये क्या तमाशा है इत्ते पैसे लेते हो और ढंग की सांकल / कुण्डी नी लगवा सकते हो क्या " पर फिर जितनी फुर्ती से फ़ोन उठाया डबल फुर्ती से रख दिया, कॉल करके बोलूवा क्या, इत्ती सब बात की अंग्रेजी कहा आती है "
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फिर जैसे तैसे कॉल कर के अगले को समझाया तो उसने बोला की वो हॉउस कीपिंग को भेजेगा, अब इसके आगे मेरे साथ अगले की ( हाउस कीपिंग वाले भिया ) यु बातचीत हुई ( उसकी जो अंग्रेजी मेरेको समझ में आयी और मेरी जो अंग्रेजी सुन के वो घायल हुवा उसका दोनों का अनुवाद है पेलवान )
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हॉ. की. वा. भि. : हां भिया मै आपकी क्या सेवा कर सकता हु
मै : दरवाजे में सांकल नी है, दरवाजा लॉक कैसे होगा ( मन में : ज्यादा तेज चलने की जरुरत नी है )
हॉ. की. वा. भि. : सर ये ऑटोमेटिक लॉक है, आप सिर्फ दरवाजा खींच ले
मै : उतना तो मुझे भी समझ में आता है, कोई पेली बार रुके है क्या ५ स्टार में, पर ये ख़राब है बार बार खुल जाता है ( बाबा इंदौर में मिलना तब बताऊंगा )
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हॉ. की. वा. भि. : अरे नहीं सर वो अंदर से खुलता है बाहर से नहीं खुलेगा,
मै : कैसे नी खुलेगा मैंने अभी खोल के देखा तो खुल रहा है ( पागल समझ रिया है क्या )
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हॉ. की. वा. भि. : सर आपने चाभी से खोला होगा, वरना नहीं खुलेगा
मै : नी यार बगैर चाभी के खुल गया था ( सफाई से झूठ बोलते हुवे )
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हॉ. की. वा. भि. : सर आप बाहर जाइये मैं अंदर से बंद करता हु फिर आप खोल के देखिये
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और भिया जैसे ही मै बाहर गया मुझे याद आया की नगदी तो कमरे में ही है, मै चीते की फुर्ती से वापिस कमरे में आया और उसको बोला की पेले तू बाहर जा, फिर पेलवान वो बाहर गया भाई ने धन कब्जे में किया और फिर बाहर गया,
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और भिया क्या बताऊ बाहर से लॉक सई में नी खुल रिया था, भोत भेंकर लजवाने के काम हो गए, अगला भी ऐसे देख रिया था की पता नी कौन कौन लोग आ जाते है ५ स्टार में,
पर अपन कोई हार मान रिये है क्या, अपन ने भी बोल दिया हो सकता है पेले कुछ ख़राब हो गया होगा अब सई - साट हो गया है, और ये भी बोल दिया की एक चिटकनी लगा देते तो इत्ता कन्फूजन तो नी होता न, हां नी तो
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चलो भिया अब सो रिया हु कल दुबई घूमने जाना है
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क्रमशः
~अbhay
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